Tuesday, October 19, 2010

प्रेमांकुर स्नेहिल उपहार

विजयादशमी के विजयपर्व के पावन अवसर पर सभी श्रद्धालुओं को रामचरितमानस की अमृत धारा "श्री मनोरथ सिद्धि पाठ" सप्रेम, सादर सम्पर्पित है. आस्तिक जनों के लिए महावीर वीर बजरंगी और मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम भाव सागर से पार लगाने की दो अनुपम पतवार हैं. जिनके सहज, सरल एवं निर्मल प्रयोग से सभी जनों को लाभ पहुंचता है. मन की चंचलता, तन की त्योरियां साधक के लिए सार्थक दिशा में परिवर्तित हो जाती हैं. धन की उपस्तिथि और अनुपस्तिथि साधक के भावों को प्रभावित नहीं करती. रामचरित मानस श्री गोस्वामी तुलसीदास की ह्रदय गंगा का उद्घोष है. सत्य की सनातन पर (०)० का संबल है. चिंतन मनन करने पर मानस का हंस क्षारी-नीर को अलग-अलग करने में समर्थ हो जता है. पुण्यभूमि भारत में सभी को मुक्ति का प्रसाद मिला है. अतः हम सभी सौभाग्यशाली हैं की इस पावन पवित्र आत्म्धाम में परमात्मा की असीम अनुकम्पा से जन्म मिला है.

"बड़े भाग्य मानसु तनु पावा, सुर दुर्लभ सद्ग्रंथान गावा:

इस मानव जीवन को सही दिशा प्रदान करने का विनम्र प्रयास हम सभी मिलकर करें और सबको गले लगाएं. सबके हितों में अपना हित देखें. तन-मन, धन-जीवन एवं प्राणों का समर्पण कर हम दैहिक दैविक और भौतिक तापों से मुक्ति प्राप्त करें.

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमारे प्रेमांकुर की S .D .J (G ) वर्ल्ड संस्था कार्यरत है. राष्ट्रीय स्तर पर अनेकों संस्थाओं/संगठनों का अभियान है. "युग-सम्रद्धि-संस्कृति रंजन अभियान २०१०-२०२०" आप सभी का हम हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन करते हैं. हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है की हमारे भारतीय एवं भारतीयता के विश्व समर्थक हमारे इस अभियान में अपना योगदान प्रदान करेंगे. हमारे अंतर्राष्ट्रीय रामराज्य बहुश्रेयालय का स्वागत हमें हर्षित एवं गौरवान्वित करता है. आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप सभी साधक हमारे इस सौहार्द पूर्ण सहयोग एवं मार्गदर्शन के लिए हमें आका हार्दिक अभिनन्दन एवं स्वागत करते हैं. वीसवीं सड़ी के १९८० से शुरू हुए हमारे साहित्यिक एवं अध्यात्मिक यज्ञों में आपकी समिधा ही हमारी जागरूकता का परिचायक है. समय के भाल पर आपका स्मृति चिन्ह युगों-युगों तक आपका आपके परिवार, मित्र एवं सहयोगियों का चिंतन चरित्र एवं आचरण सदैव आगे आने वाले पीढी की सार्थक दशा दिशा एवं सम्भावना प्रदान करेगा.

इति

प्रेम परिहार प्रेमांकुर

2 comments:

  1. शानदार प्रयास बधाई और शुभकामनाएँ।

    -लेखक (डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश') : समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान- (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जिसमें 05 अक्टूबर, 2010 तक, 4542 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता राजस्थान के सभी जिलों एवं दिल्ली सहित देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे), मो. नं. 098285-02666.
    E-mail : dplmeena@gmail.com
    E-mail : plseeim4u@gmail.com

    ReplyDelete